
भीम प्रज्ञा न्यूज़।
जवाब की आशा में
हर कोई बोये जा रहा है
सवालों की फसल
इंसानी नकाबों
से उपजे
जज्बाती सवाल….।
भूख, गरीबी, आंसू
से उपजे
करुण सवाल….।
रिश्तों-नातों में खिंचती दीवारों
से उपजे
मौन सवाल।
भाषा, मजहब, संप्रदाय
में उबाल से
उपजे गरम सवाल….।
जंगल, मिट्टी, पानी, हवा के
बिगाड़ से
उपजे तीखे सवाल….।
पुलिस की लाठियों
थानों-कचहरियों से
उपजे डरे-सहमे सवाल….।
प्रजातंत्र बनाम नेतातंत्र
से उपजे
बौद्धिक सवाल….।
घरबदर और वापसी
से उपजे
सियासी सवाल….।
सवाल दर सवाल
तीखे, भोंथरे, चुभते
सिसकते, सहमते सवाल
सवाल-सवाल-सवाल…
ये सवाल नहीं पत्थर हैं,
एक दूसरे की तरफ
उछलते पत्थर
और
हम सब ही
सर्वशक्तिमान सियासत भी
कर जाती है हजम
सारे सवाल।
कहां से तलाशोगे जवाब?
क्यों कि-
शोर में भी संज्ञाहीन हैं
सभी जवाबदेह।
सम्बन्धों की जगह काबिज़ हैं
लेन-देन की बहियां
संवेदनहीन बाज़ार में
भौतिक जिन्सों की नुमाइश।
भूख, गरीबी, रोटी तो
है केेवल नसीबों का गणित
डमरू-ढपलियों के शोर मे
मदमस्त है धर्म।
वाद-प्रतिवाद में
बौद्धिक नशेड़ी घिरे हैं खुद
सवालों के घेरे में
तो फिर?
कहां मिलेंगे जवाब?
एक ही रास्ता है
जो हम जानते हैं
आओ सवालों की खेती
करें खुद के खातिर
या बीज ही नष्ट करदें
या फिर ओढ लें
सारे सवाल खुद ही
जिनके जवाब
चतुराई से
शातिर ढंग से
हम सब ने छिपा रखे हैं
कहीं अपने भीतर!
राजेन्द्र शर्मा ‘मुसाफ़िर’